Ghalib shayari : मिर्जा गालिब जी का पूरा नाम मिर्जा असद उल्लाह उर्फ ग़ालिब था, मिर्ज़ा ग़ालिब एक येसी शक्सिसत जिसे हर कोई जनता है। एक ऐसे महान शायर जिन्होंने लोगो का हिंदी शायरी के प्रति नजरिया ही बदल दिया इन्होंने हिंदी, उर्दू और फारसी कई भाषाओं में शायरियां लिखी है।
तो इसलिए दोस्तो आज की न्यू ब्लॉक पोस्ट में मिर्जा गालिब पर कुछ चुनिंदा शायरियो का शानदार कलेक्शन लेकर आएं है आईये दोस्तों हम इन मशहूर शायरियों को पढ़ाना शुरू करते है।
Ghalib shayari
रगो मे दौड़ते फिरने के हम नही क़ाइल
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मै !
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई !
तेरे वादे पर जिये हम तो यह जान झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता !
है गालिब जीते जी तो सभी प्यार करते है
पर मैं तो आशिक हूं
जो मरकर भी तुम्हे चाहता रहूंगा..!!!
कुछ दर्द अगर सीने में है ग़ालिब
तो मोहब्बत में तड़पना गलत नही.!!
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं !
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !
बदनामी का डर है तो
मोहब्बत छोड़ दो गालिब
इश्क की गलियो में
जाओगे तो चर्चे जरूर होगे..!
है और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते है कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और..!!!
कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता !
Ghalib shayari in hindi
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ग़ालिब
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है !
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते !
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे
दम निकले बहुत निकले मिरे
अरमान लेकिन फिर भी कम निकले !
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर !
ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे !
Two line ghalib shayari
गुज़रे हुए लम्हों
को मैं इक बार तो
जी लूँ कुछ ख्वाब तेरी
याद दिलाने के लिए हैं !
जिस ज़ख़्म की हो सकती हो
तदबीर रफ़ू की लिख दीजियो
या रब उसे क़िस्मत में अदू की !
अर्ज़-ए-नियाज़-ए
इश्क़ के क़ाबिल नहीं
रहा जिस दिल पे
नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा !
दिल से तेरी निगाह
जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा
में रज़ामंद कर गई !
बे-वजह नहीं रोता
इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर
चाहो वो रूलाता ज़रूर है !
हाथों की लकीरों पे मत
जा ऐ गालि नसीब उनके
भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते !
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना !
Mirza ghalib shayari in hindi
नज़र लगे न कही
उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे
जिगर को देखते है !
इस सादगी पे कौन न मर
जाए ऐ ख़ुदा लड़ते है और
हाथ में तलवार भी नही गा़लिब !
तेरे वादे पर जिये
हम तो यह जान झूठ
जाना कि ख़ुशी से मर
न जाते अगर एतबार होता !
हमको मालूम है जन्नत
की हक़ीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को
ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है !
एजाज़ तेरे इश्क़ का
ये नही तो और क्या है
उड़ने का ख़्वाब देख
लिया इक टूटे हुए पर से !
ता उम्र बस एक यही
सबक याद रखिये
इश्क़ और इबादत
मे नियत साफ़ रखिये !
गुनाह कर के कहाँ जाओगे ग़ालिब ये
ज़मी ये आसमान सब उसी का है !
यादे–जानाँ भी अजब रूह–फ़ज़ा आती है
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है !
Mirza ghalib ki shayari
हज़ारो ख़्वाहिशे ऐसी कि
हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान
लेकिन फिर भी कम निकले !
आह को चाहिए इक
उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी
ज़ुल्फ़ के सर होते तक !
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नही !
तुम अपने शिकवे की बाते न खोद
खोद के पूछो हज़र करो मिरे दिल
से कि उस में आग दबी है ! गा़लिब !
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ मे कोई
ग़ालिब जिसे खुद से बढ़ कर
चाहो वो रूलाता ज़रूर है..!
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मै कहाँ और ये वबाल कहाँ !हम तो
फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब
न जाने वो आइना कैसे देखते होगे !
Final words on Ghalib shayari
तो दोस्तो आपको हमारी आज की खास पोस्ट ghalib shayari आपको यह शायरी पसंद आई होगी, दोस्तों इसे अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ शेयर करें और आप चाहें तो कमेंट करके हमें अपनी शायरी भी दे सकते हैं। हम इनको अपनी पोस्ट में ज़रूर शामिल करेंगे।